राम मंदिर में न लोहा लगा, न सीमेंट…फिर कैसे खड़ा हो गया इतना बड़ा टेंपल? नींव में क्या पड़ा

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दशकों तक टेंट में रहे भगवान रामलला 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर में विराजमान हो जाएंगे. अयोध्या में निर्माणाधीण राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी. राम मंदिर अब तक जितना बनकर तैयार हुआ है, उसकी भव्यता देखते ही बनती है. दिलचस्प बात यह है कि इस राम मंदिर के निर्माण में न तो लोहे का इस्तेमाल हुआ है और न ही सीमेंट का. अब सवाल उठता है कि हमारे-आपके जिस घर को बनाने में लोहे-सीमेंट की अहम भूमिका होती है, इतने भव्य राम मंदिर में आखिर इसका यूज नहीं हुआ तो फिर इतना बड़ा मंदिर बनकर कैसे खड़ा हो गया? बगैर लोहे-सीमेंट के राम मंदिर की नींव कैसे पड़ गई? बहरहाल, राम मंदिर में लोहे-सीमेंट न लगने की जानकारी तो हम पहले ही बता चुके हैं, मगर आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर यह संभव हुआ कैसे?

कैसे बना है राम मंदिर?
दरअसल, राम मंदिर को विशेष प्रकार के पत्थरों से बनाया गया है. राम मंदिर में प्रयुक्त हर पत्थर में खांचा बनाया गया है और इसी की मदद से दूसरे पत्थर को खांचे में फिट किया जाता है. इसी तरह राम मंदिर में इस्तेमाल हुए सभी पत्थर बगैर सीमेंट के भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. राम मंदिर का जो मुख्य ढांचा है, वह पूरी तरह से राजस्थान के भरतपुर के बंसी पहाड़पुर के पिंक स्टोन यानी गुलाबी पत्थर से तैयार किया गया है. कहा जाता है कि गुलाबी पत्थर न केवल अधिक मजबूत होती है, बल्कि इसकी उम्र भी काफी लंबी होती है. इन पत्थरों से ही मंदिर का निर्माण हुआ है और इसमें लोहे-सीमेंट का यूज नहीं हुआ है.

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मंदिर के नींव में भी लोहे-सीमेंट का यूज नहीं
राम मंदिर के नींव में भी लोहे-सीमेंट या किसी स्टील का इस्तेमाल नहीं हुआ है. मंदिर जहां बना है, वहां की मिट्टी ढीली रेत वाली थी. मगर साइंस और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके इसे चट्टान में बदला गया और तब जाकर इस जमीन पर मंदिर खड़ा हुआ. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय की मानें तो जब नींव के लिए मिट्टी का परीक्षण शुरू हुआ, तो यह पाया गया कि मंदिर के नीचे मिट्टी नहीं थी, बल्कि बिल्कुल ढीली रेत थी, जो नींव के लिए बिल्कुल भी सही नहीं थी. इसके बाद फैसला हुआ कि मंदिर के निर्माण कार्य में लगी कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) को इस समस्या से निपटने में आईआईटी दिल्ली, गुवाहाटी, चेन्नई, रूड़की और बॉम्बे के एक्सपर्ट, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) के साथ-साथ राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के शीर्ष निदेशक मदद करेंगे. साल 2020 में कोविड-19 के दौरान ही बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया कि रेत हटा दी जाएगी.

लोहे-सीमेंट की जगह क्या इस्तेमाल?
इसके बाद अयोध्या में मंदिर की 6 एकड़ जमीन से 14 मीटर तक गहराई तक रेत हटा दी गई. इसके बाद नींव के वास्ते चट्टानें तैयार करने के लिए खाली कराई गई जगह पर ‘रोल्ड कॉम्पैक्ट कंक्रीट’ नामक एक विशेष प्रकार के कंक्रीट मिश्रण की 56 परतों से भर दिया गया. यह कंक्रीट ऐसी होती है कि बाद में चट्टान बन जाती है. बता दें कि लोहे का यूज किए बिना इस विशेष कंक्रीट का उपयोग केवल नींव में किया जाता है. इस तरह से बगैर लोहे और सीमेंट के ही मंदिर की नींव भी खड़ी हो गई. मंदिर का बाकी हिस्सा राजस्थान के भरतपुर से लाए गए गुलाबी बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जबकि 21 फीट ऊंचे चबूतरे को बनाने के लिए कर्नाटक और तेलंगाना के ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है.

नागर शैली भी है एक वजह
राम मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट होगी और यह सब बिना किसी लोहे के हो रहा है. अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में एक ग्राम भी लोहे का प्रयोग नहीं हुआ है, इसकी वजह है कि राम मंदिर को परंपरागत नागर शैली में बनाया जा रहा है. इस शैली में लोहे का इस्तेमाल नहीं होता है. नागर शैली उत्तर भारतीय हिंदू स्थापत्य कला की तीन शैलियों में से एक है. इस नागर शैली का कनेक्शन हिमालय और विंध्य के बीच की भूमि से रहा है और यह शैली मुख्य तौर पर उत्तर भारत में विकसित हुई है. खजुराहो मंदिर, सोमनाथ मंदिर और कोणार्क का सूर्य मंदिर भी नागर शैली में बना मंदिर है.

कब है राम मंदिर का उद्घाटन?
गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर के प्रथम तल का निर्माण पूरा हो चुका है. 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मंदिर का उद्घाटन करेंगे और इसी दौरान रामलला की मूर्ति स्थापित कर क प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी. राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार और साथ में राम मंदिर ट्रस्ट जुटा हुआ है. इस कार्यक्रम में हर जगत से देश की बड़ी हस्तियां शामिल होंगी.

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